DEHLIJ

डॉ. शशि शर्मा

लौटती सांसे 




देखो शोर मत करो 

बंदूकों को सुस्ताने दो 

और धरती को सोने दो

आज मुद्दतों के बाद 

चौखटों ने आकाश ताका है 

बच्चों ने मैदान के बीचों-बीच 

गड़ी सूली को उखाड़

अपनी विकटें गाड़ दीं हैं 

रंग -बिरंगी पतंगों की पींगे

अंतरिक्ष तक उठने लगी हैं

स्कूल के लिए बस्ताें की यात्रा 

शुरू हो गई है 

तस्वीरों में टंगे खिलौने 

बच्चे छूकर महसूसने लगे हैं 

लोग अब पटरी -पटरी 

सड़कों पर चलते हैं 

निर्वासित दुनिया धीरे -धीरे 

घरों को लौटने लगी है 

और पोखरों के किनारे 

नदी में सिमटने लगे हैं 

अरसे के बाद औरत 

कफन से बाहर निकली है 

आज हमीदा ने अबदुल्ला से 

शॉपिंग की फरमाईश की है 

कोड़ों के दाग खुली हवा में 

 सूखने लगे हैं 

जमीला की सर्दियां 

इस बार बहुत गर्माई हैं  

आदमी के चेहरे में 

भाई बाप खाबिंद 

उभरने लगे हैं 

अब वहशी आदम 

इंसानी लिबादे में लिपटने लगा है 

घरों की क्यारियों में 

किलकते बच्चे 

एक जिंदा कौम का 

अहसास करातें हैं 

शुक्र है एक बुरा सपना 

टूट गया. 


                   


एलबम 


आजकल मैं 

फोटो खिचवाने के ख्याल मात्र से 

सहम जाता हूँ 

जानता हूँ चेहरे की कसावट 

झुर्रियों में बदल चुकी है 

पता नहीं कैसे 

फोटो के हर कोण से

पिताजी का चेहरा उभर आता है 

आंखों को सहारा देते गाल 

और उनपर खिसियाई हंसी हंसते 

टूटे दांतों की पंक्ति में 

दो -चार बचे खूंटे 

नेक टाई की नॉट सी उभरती 

गले की हड्डी

गदराया जिस्म 

रस निकले सूखे गन्ने सा 

नजर आता है 

मैं डरता हूं 

यह फोटो मेरे एलबम के  

ठहाकों पर

सन्नाटों की गूंज सा 

छा जाएगा 

मैं जीना चाहता हूँ 

एलबम की फोटो में 

इसीलिए आजकल डरता हूं

फोटो खिचवाने से.                         


6 comments:

  1. बहुत खूब! एलबम ज्यादा गहराई में ले चली

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  2. बहुत खूब! एलबम ज्यादा गहराई में ले चली

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  3. पहला जो कविता हैं आपके, वह मुझे इतना सुकून दिया...
    सच में, बहुत खूब

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  4. पहला जो कविता हैं आपके, वह मुझे इतना सुकून दिया...
    सच में, बहुत खूब

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  5. So blessed to be reading your work Auntie...

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